GPS-Based GNSS Toll System: फास्टैग से क्यों अलग है GNSS Toll System, जानिए फुल जानकारी

GPS-Based GNSS Toll System. नमस्कार दोस्तों स्वागत है। ऑनलाइन पीएम योजना डॉट कॉम पर आपका! हमारे दैनिक जीवन में ऐसे विभिन्न प्रकार की जानकारियां अपडेट होती रहती है। जिनके बारे में जानना लोगों के लिए बहुत ही जरूरी है। जिससे कभी-कभी जरूरत पड़ने पर आपको बड़े फायदे प्रदान करती है। बल्कि आपको नुकसान से भी बचाती है। सरकार देश के विभिन्न कामों में नए-नए तकनीक का बढ़ावा दे रही है।

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हाल ही में केंद्र सरकार ने टोल प्लाजा पर लगने वाला टोल टैक्स का कलेक्शन नई तकनीक से करने का फैसला किया है। ऐसे में आपके लिए यह जानकारी बहुत उपयोगी साबित हो सकती है। सरकार अब फास्टैग के साथ-साथ का कई जगह पर इस नई तकनीक से टोल टैक्स कलेक्शन का काम करेगी।

देश में ऐसे करोड़ों लोग हैं, जो प्रतिदिन विभिन्न कामों से अपनी कार या फिर और गाड़ियों को लेकर सड़कों पर निकलते हैं। जब भी कोई फोर व्हीलर राजमार्ग पर चलता है, तो पर टोल प्लाजा मिलता है। जहां पर टोल टैक्स चुकाना होता है जो सरकार के द्वारा तय किया जाता है। केंद्र सरकार टोल टैक्स कलेक्शन के मामले में ऐसे कई बदलाव कर चुकी है जिससे टोल प्लाजा पर लंबी-लंबी लाइनों का दौर खत्म हो गया है। पहले जो कई किलोमीटर तक लंबी-लंबी गाड़ियों की लाइन लग जाती थी। जिसे ईंधन तो काफी खपत होता ही था। साथ ही लोगों की समय भी काफी लग जाता था।

अब ऐसे होगा टोल टैक्स कलेक्शन

सरकार ने 2014 में फास्टैग से टोल टैक्स कलेक्शन करने का फैसला किया ,जिससे अब फिर से नए अपडेट में टोल टैक्स को वसूलने में लागू कर रही है। दरअसल हम यहां पर बात कर रहे हैं, जीपीएस बेस्ड जीएनएसएस टोल सिस्टम (GPS-Based GNSS Toll System) के बारे में।

सरकार नए अपडेट करती रहती है, जिससे अब हाइवे पर टोल टैक्स को लेकर नया सिस्टम से टोल टैक्स को वसूला जाएगा, जिससे लोगों बिना परेशानी के यह तकनीक बड़ी कारगार साबित हो सकती है। जिसके बाद बिना टोल प्लाजा के ही टैक्स कट जाएगा। हालांकि आप को यहां पर जीपीएस बेस्ड जीएनएसएस टोल सिस्टम के बारे में जान लेना चाहिए, जिससे परेशानी ना हो। हम आप को जीपीएस बेस्ड जीएनएसएस टोल सिस्टम क्या है, कैसे काम करता और कहां से सरकार ने इसे लागू किया जैसी जानकारी दे रहे है। 

जानिए क्या है GPS-Based GNSS Toll System

सरकार ने पहले जहां राजमार्गों और एक्सप्रेसवे पर कारों और भारी वाहनों से टोल एकत्र करने के लिए फास्टैग को लागू किया लेकिन फिर से एक अहम अपडेट में GPS-Based GNSS Toll System से टोल वसूलने की तैयारी चल रही है। इस टेक्नोलॉजी का  उपयोग टोल वसूलने के अलावा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए वाहनों को ट्रैक करने के लिए भी किया जा सकता है।

 इस नए टोल सिस्टम में सैटेलाइट की मदद से टोल टैक्स कैलकुलेट किया जाएगा। जितने किलोमीटर राजमार्गों और एक्सप्रेसवे आप ट्रैवल करेंगे, उतना ही टैक्स आपको देना होगा। जिससे नई टैक्स व्यवस्था के कई नियम बनाए गए है, जिसमें कोई हाइवे पर ट्रेवल करता हैं तो आपको शुरुआती 20 KM के लिए कोई टैक्स नहीं देना होगा। हालांकि जब  20 KM की राइड पूरी हो जाएगी तो आपका 21 वें किलोमीटर से टैक्स जुड़ना शुरू हो जाएगा।

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सरकार ने इस साल 2024 जुलाई में GPS-Based GNSS Toll System को एक पायलट प्रोजेक्ट के तहत स्थापित किया है। बता दें कि कर्नाटक में NH-275 के बेंगलुरु-मैसूर खंड और हरियाणा में NH-709 के पानीपत-हिसार खंड पर GNSS-आधारित उपयोगकर्ता शुल्क संग्रह प्रणाली लगाया गया है।

कैसे काम करता है GPS-Based GNSS Toll System

जीएनएसएस का लागू होना काफी समय लग सकता है। हालांकि आप के लिए जानना जरुरी यह है, कि GPS-Based GNSS Toll System कैसे काम करता है। गाड़ियों को एक OBU (ऑन-बोर्ड यूनिट) से लगाया जाएगा। जो टोल संग्रह प्रणाली के लिए एक ट्रैकिंग डिवाइस के रूप में कार्य करता है। यह ऑन-बोर्ड यूनिट ट्रैक करने का काम करेगा। जिससे गाड़ियों वाहन के रूट चार्ट और राजमार्गों पर यात्रा की गई दूरी के बारे में जानकारी भेजेगा। जिससे से गाड़ी कितने किलोमीटर चली हैं, तो उसी दूरी के हिसाब से टैक्स का लगेगा।

अभी जो फास्टैग सिस्टम लगा है, तो इससे अलग होगा। क्योंकि GNSS Toll System लागू होने से देश कहीं भी टोल नाके की जरूरत नहीं होगी। जब भी कोई गाड़ी की हाईवे पर एंट्री होगी तो GNSS ट्रैक करने लगेगा और जहां एग्जिट करेगा, उसके हिसाब से टोल कट जाएगा।

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